तुम्हारे वो नमी से भरे हुए हाथ,
मेरे इन हाथो से छूटे हैं.........रह गये हैं ये खाली........
पर याद है मुझे आज भी.........
कैसे रेत की तरह तुम्हारे हाथ मेरे हाथो से फिसल रहे थे.......
और मैं किसी रेत की घडी सा तुम्हे बीतता हुआ देख रहा था.......
तुम्हारा वो नमी से भरा हुआ सुकून भरा स्पर्श ..........
मुझ पर से किसी पानी की बूँद सा छलकने को तैयार सा.....
और मै किसी चिकने पत्ते सा.......खुद को समेट कर तुम्हे संभाल पाने में...असमर्थ.....
अब भी तुम्हारा वो नमी से भरा हुआ स्पर्श याद कर......
मैं खुद को पा रहा हु........
समंदर के उस किनारे सा भरा हुआ.......
जिसे अभी अभी एक नमी से भरी हुई लहर छू के गयी हो.............