हो सकता था ये भी.......
की ये रात अकेली न होती........
मेरे हाथो पर रखी ये किताब आज मेरी सहेली न होती.......
हर अलफ़ाज़ मुझसे यूँ खफा सा न होता.......
अगर तुम्हारे साथ न होने की ये पहेली न होती.......
पर हूँ आज मैं अकेला सा यूँ.......
की कलम भी हाथ मिलाने को बेताब सी है......
और अलफ़ाज़ भी.......
पर किसी ने खा है सच ही........
की अपनों के साथ सी बात गैरों में कहाँ.......
इसीलिए शायद हूँ मैं अकेला......
और मेरे साथ बैठी ये रात भी है अकेली.......
No comments:
Post a Comment